
राजनीति और रोमांस में कब कौन किसका क्या हो जाए, कहना मुश्किल है। ऐसा ही कुछ देखने को मिला जब नगीना से सांसद चंद्रशेखर आज़ाद की पूर्व प्रेमिका डॉ. रोहिणी घावरी ने एक 29 मिनट का लाइव वीडियो किया और पूरे देश को popcorn-ready कर दिया।
“दलितों का मसीहा या राजनीति का सौदागर?”
रोहिणी का आरोप है कि आज़ाद सिर्फ दलितों के नाम पर राजनीति कर रहे हैं लेकिन काम बीजेपी के लिए करते हैं। “ये दलित-मुस्लिम एकता का झंडा उठाते हैं और अंदर से बसपा को कमजोर करने की साजिश रचते हैं,” उन्होंने कहा।
मतलब ऊपर से ‘भीम आर्मी’ नीचे से ‘सीक्रेट आर्मी’?
“मायावती को गाली, मुझे धमकी” – ऑडियो बम का दावा
डॉ. घावरी ने ये भी कहा कि उनके पास कुछ ऑडियोज़ हैं जिनमें चंद्रशेखर ने मायावती जी के लिए अपमानजनक शब्द बोले हैं। और मज़ेदार बात ये कि रोहिणी खुद मायावती को अपना आदर्श मानती हैं। Irony just left the chat.
“शादी का झांसा और लड़कियों की बर्बादी” – बॉलीवुड स्क्रिप्ट तैयार
रोहिणी ने कहा कि चंद्रशेखर ने उनसे शादी का वादा किया था। अब यह पॉलिटिक्स की सबसे common लाइन बन गई है – “Shaadi ka waada, phir taada.”
उन्होंने तो यहां तक दावा कर दिया कि कुछ लड़कियों को पैसे देकर ‘ख़रीदा’ गया और एक लड़की ने तो दिल्ली में आत्महत्या तक कर ली। भाई साहब, Netflix को स्क्रिप्ट भेज दीजिए।
“कार्यक्रमों में धंधा, फंडिंग में गड़बड़झाला?”
चंद्रशेखर के राजनीतिक इवेंट्स पर घावरी ने बड़ा आरोप लगाया – “जहाँ खर्च 10 लाख, वहाँ चंदा 50 लाख! किसका विकास हो रहा है?”
इस लाइन से तो किसी कॉमेडी शो का ओपनिंग स्क्रिप्ट लग रहा है।
“बसपा जॉइन करने की डील, अध्यक्ष बनने की डिमांड”
घावरी ने बताया कि जब उन्होंने 2024 में बसपा में विलय की बात की, तो चंद्रशेखर ने शर्त रख दी – “बसपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष मुझे बनाओ।”
मतलब अब राजनीति में भी ‘Buy 1, Get Chair Free’ ऑफर?

आजाद का जवाब: “AI है ये सब, कोर्ट में देखेंगे”
चंद्रशेखर आज़ाद ने आरोपों को पूरी तरह फेक और मनगढ़ंत बताया है। उन्होंने कहा कि AI से बनाई गई फोटो और झूठे दावों से उनका नाम खराब किया जा रहा है।
भाई AI से प्यार करो, पर AI को मत फंसाओ।
डॉ. घावरी की चेतावनी: “जहाँ चुनाव लड़ोगे, मैं वहीं आऊंगी”
घावरी ने कहा कि अब वह चुप नहीं बैठेंगी। “सांसद बनना उनकी पहली और आखिरी बड़ी उपलब्धि होगी।”
लगता है चुनावों से पहले ये सीरीज़ और भी एपिसोड्स लेकर आएगी।
क्या है असल मुद्दा?
इस पूरे मामले में दो बातें तो साफ हैं:
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व्यक्तिगत रिश्तों का पॉलिटिकल इस्तेमाल हो रहा है।
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राजनीतिक पारदर्शिता की बात करने वाले नेता भी सवालों के घेरे में हैं।
सवाल ये नहीं कि कौन सही है, सवाल ये है कि सच्चाई कब सामने आएगी – वीडियो से या वोट से?
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